“One Nation,One Election, BJP का अगला बड़ा एजेंडा, फायदे, चुनौतियां और विपक्ष की प्रतिक्रिया”

BJP का अगला एजेंडा: ‘ONE NATION, ONE ELECTION’ – एक राष्ट्र, एक चुनाव

भारत में चुनावी प्रक्रिया को सुधारने के उद्देश्य से, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने ‘One Nation, One Election’ (एक राष्ट्र, एक चुनाव) का प्रस्ताव रखा है। इस अवधारणा के तहत, लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जाने की बात की गई है। इस ब्लॉग में हम इस प्रस्ताव का विस्तृत विश्लेषण करेंगे, जिसमें इसकी परिभाषा, संभावित परिणाम, आंकड़े, और विपक्ष की प्रतिक्रियाएं शामिल हैं।

‘One Nation, One Election’ क्या है?

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का मतलब है कि देशभर में लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में भारत में अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं जिससे हर साल किसी न किसी राज्य में चुनावी प्रक्रिया चलती रहती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • भारत में 1951-52 से लेकर 1967 तक लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाते थे।
  • 1968-69 में कुछ राज्य सरकारें समय से पहले गिर गईं, जिससे यह समांतर व्यवस्था टूट गई।
  • तब से लेकर अब तक अलग-अलग समय पर अलग-अलग राज्यों में चुनाव होते रहे हैं।
  • देश में औसतन हर साल 2-3 राज्य चुनाव में जाते हैं। इससे नीतिगत निर्णयों पर आचार संहिता का असर पड़ता है, और चुनावी खर्च लगातार बढ़ता है।

 

इसके प्रस्तावित लाभ क्या हैं?

1. वित्तीय लाभ:

2019 के लोकसभा चुनाव में खर्च: लगभग ₹60,000 करोड़

हर साल औसतन 5-6 राज्यों में चुनाव होने पर कुल वार्षिक चुनावी खर्च ₹10,000-₹15,000 करोड़ तक पहुंच सकता है।

यदि सभी चुनाव एक साथ हों, तो अनुमानित कुल खर्च 30% तक घट सकता है।

थिंकटैंक नीति आयोग का कहना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ से भारत प्रति चुनाव चक्र में ₹40,000 करोड़ तक की बचत कर सकता है।

2. प्रशासनिक लाभ:

चुनावों के दौरान 1 करोड़ से अधिक सरकारी कर्मचारियों की तैनाती होती है।

एक साथ चुनाव होने पर यह मानव संसाधन एक बार में प्रयोग हो सकता है, जिससे प्रशासनिक दक्षता बढ़ेगी।

बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुकते हैं। एक साथ चुनाव से यह बाधा कम होगी।

3. राजनीतिक स्थिरता:

बार-बार चुनावी माहौल समाप्त होगा और सरकारें अपनी पूरी अवधि के लिए स्थिरता के साथ काम कर पाएंगी।

4. जन भागीदारी

एकसाथ चुनाव से लोगों की भागीदारी बढ़ सकती है।

अलग-अलग चुनाव में कम मतदान प्रतिशत देखा जाता है।

संवैधानिक चुनौतियां

आवश्यक संशोधन:

  1. अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा।
  2. कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल आगे-पीछे करना पड़ेगा।
  3. राज्य सरकारों की सहमति अनिवार्य होगी।

व्यवहारिक चुनौतियां:

  1. यदि कोई राज्य सरकार बीच कार्यकाल में गिर जाती है तो क्या पूरा देश फिर से चुनाव में जाएगा?
  2. क्या राष्ट्रपति शासन लंबे समय तक लागू किया जा सकता है?
  3. इस नीति को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की जरूरत होगी।
  4. सभी राज्यों की सहमति जरूरी होगी, क्योंकि यह राज्यसभा और विधानसभाओं से भी पारित होना अनिवार्य है।

 

विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया

कांग्रेस:

  • इसे भारतीय संघीय ढांचे पर सीधा हमला बताया है।
  • पार्टी के अनुसार यह राज्यों की स्वायत्तता और संघवाद की भावना के विरुद्ध है।
  • संविधान में अनुच्छेद 1 से लेकर 365 तक राज्यों को शक्तियाँ दी गई हैं, जो इस प्रणाली से कमजोर हो सकती हैं।

क्षेत्रीय दलों की राय:

टीएमसी (पश्चिम बंगाल): यह “एक राष्ट्र, एक पार्टी” के एजेंडे की शुरुआत है।

डीएमके (तमिलनाडु): इससे राज्यों की अलग पहचान और अधिकारों को खतरा है।

समाजवादी पार्टी (उत्तर प्रदेश): यह केंद्र को अत्यधिक शक्तिशाली बना देगा।

निष्कर्ष: क्या भारत तैयार है?

‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ एक क्रांतिकारी विचार है जो अगर सही तरीके से लागू किया जाए, तो इससे भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था अधिक मजबूत, कुशल और समावेशी बन सकती है। लेकिन यह तभी संभव है जब:

  • सभी राज्यों की सहमति हो
  • संवैधानिक प्रावधानों में उचित संशोधन हो
  • और एक मजबूत कार्यप्रणाली विकसित की जाए

बीजेपी इसे 2025-26 तक लागू करने का संकेत दे चुकी है, और इसके लिए राजनीतिक सहमति बनाने की कोशिशें तेज़ कर दी गई हैं।

 

क्या यह भारत की चुनावी राजनीति में नई सुबह होगी या फिर लोकतंत्र के विविध रंगों को एक रंग में रंगने की कोशिश?

आप क्या सोचते हैं? अपनी राय कमेंट में जरूर दें।

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